04 दिसंबर, 2025

How to deal with Biased Boss!!!








How to deal with Biased Boss!!!

Step 1
Weigh the severity of your boss’s biases before acting. A boss may allow other employees as much time off as they request but routinely deny workers with small children the same privilege. Or the boss might unintentionally insult an employee by implying that people of her faith are less intelligent, in general. These actions might show poor judgment, but they’re not illegal. However, a boss who knowingly discriminates against workers because of race, gender, ethnicity, religion or a disability is breaking the law under Title VII of the 1964 Civil Rights Act.
Step 2
Document your boss’s behavior. Discrimination can be hard to identify and even more difficult to prove. If you decide to file a claim, documentation is critical in showing a pattern of biased behavior. Take notes after encounters in which the boss ties your “incompetence” to your race or unfairly blames your disability for tardiness. Be discreet with your note-taking to avoid the impression of conspiring against your boss.
Step 3
Attempt to speak with your boss. Although it may be hard to maintain a positive relationship with a boss you feel discriminates against you, try initiating a no accusatory dialogue on intolerance. The Southern Poverty Law Center, under its “Teaching Tolerance” project, recommends tying the discussion to the company’s “bottom line.” Mention to your boss how employees who feel respected and valued help the company meet its financial goals.
Step 4
Talk with human resources if a dialogue with the boss fails. Describe your situation and present any documentation you’ve gathered. Ask about the company’s antidiscrimination and anti -harassment policies and whether they apply in your case. HR may investigate your complaint.
Step 5
File a complaint with the U.S. Equal Employment Opportunity Commission. If you find your boss’s behavior particularly hateful, you may choose to file a suit. The EEOC enforces laws that protect workers and job applicants from being discriminated against because of race, gender (including pregnancy), color, national origin, age (over 40), religion and genetic information. Laws apply to employers with at least 15 employees, or 20 workers for age bias. The agency assesses your claim, conducts an investigation and rules on the case.
Step 6
Request a transfer. An unpleasant work situation isn’t worth tolerating. You may even need to leave the company. A biased boss has no incentive to change behavior if the company tolerates discrimination.

03 दिसंबर, 2025

Surha-Tal-Bird-Sanctuary, Ballia (U.P.)

Surha-Tal-Bird-Sanctuary, Ballia


Ballia (Bhojpuri: बलिया, Hindi: बलिया) is a city with a municipal board in the Indian state of Uttar Pradesh. The eastern boundary of the city lies at the junction of the Ganges and the Ghaghara. The city is situated from 141 km from Varanasi. Bhojpuri, a dialect of Hindi, is the primary local language.
Ballia is also known as Baghi Ballia (Rebel Ballia) for its significant contribution in India's freedom struggle. During the first Independence War of India in 1857, Ballia came in picture in front of the world and Shree Mangal Pandey was that first freedom fighter of that war who was born in village Nagwa Ballia district of India. During the Quit India Movement of 1942 Ballia gained independence from British rule for a short period of time when the district overthrew the government and installed an independent administration under Chittu Pandey.




LocationAbout 17 km from Ballia bus stand, on the road leading to Maniar & 1 km from Maniar, total distance 18 km from Ballia city, 159 km from Varanasi, in district Ballia, U.P., India
Ideal time to visit Oct.- March
Timings best time morning & evening
Attractions Nature & Wildlife
How to reachBy Road-Ballia is well connected by road from Varanasi & other major cities By Rail- Ballia is located on the Railway line of NERBy Air-Babatpur Airport, Varanasi, 179 km 

This lake was declared as Bird Sanctuary in 1991, covering an area of about 34.32 km2 and comes under Divisional Forest Officer, Kashi Wildlife Division. Ramnagar Nepali King Surat got the digging work done for the lake. Fishing is the main occupation of the local natives (Mallah-the boatman & Bind).
On one end of this lake a big fountain has been built in the memory of freedom fighters with the efforts of Late Prime Minister Mr. Chandrashekhar. Migratory birds from Siberia, and other colder regions, migrate to this lake to spend their winters here. The Bird Sanctuary is worth watching during that period.










योगी अरविन्द घोष




 योगी अरविन्द घोष
अरविन्द का जन्म 15 अगस्त 1872 को बंगाल की धरती पर हुआ था। कहते हैं 15 अगस्त के दिन जन्म लेने के कारण उनका स्वतंत्रता दिवस के साथ गहरा नाता था। महर्षि अरविन्द के पिता के डी घोष अंग्रेजी सभ्यता के पोषक तथा अंग्रेजों के प्रशंसक थे। अक्सर यह कहा जाता है कि जैसे मां बाप होते हैं वैसी ही संतान भी होती है परंतु यहां यह बात तो बिल्कुल विपरीत हो गई थी। पिता अंग्रेजों के प
्रशंसक और उनके चारों बेटे अंग्रेजों के लिए यमराज की भांति बन गए थे।

आज का युग वैज्ञानिक युग है और इस युग में योग द्वारा साधना करके अमूल्य सिद्धियां प्राप्त करना अचरज की बात है। अरविन्द घोष जिन्हें लोग महर्षि के रूप में ही जानते थे उन्होंने योग के द्वारा सिद्धियां प्राप्त करके लोगों को बता दिया था कि ऐसी शक्तियां आज भी विद्यमान हैं जो इस जगत की बागडोर को अपने हाथों में रखे हुए हैं। इंसान तो इनकी कृपा का पात्र बन सकता है।

अरविन्द तो योगी नहीं थे। इस योग साधना के पहले वे कुछ और ही थे। जी हां, वे बंगाल के महान क्रांतिकारियों में गिने जाते थे। बंगाल के क्रांतिकारियों को उनकी ही प्रेरणा थी। उन्हीं के आह्वान पर हजारों बंगाली युवकों ने देश की स्वतंत्रता के लिए हंसते हंसते फांसी के फंदों को चूम लिया था। अपने जीवन में उन्होंने किसी अंग्रेज की हत्या तो क्या इसके विषय में सोचा मात्र नहीं था, न ही कभी हथियार का प्रयोग उन्होंने अपने हाथों से किया परंतु यह कटु सत्य है कि सशस्त्र क्रांति के पीछे उनकी ही प्रेरणा थी।

वैसे तो अरविन्द ने अपनी शिक्षा खुलना में पूर्ण की थी लेकिन उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए वे इंग्लैंड चले गए और कई वर्ष वहां रहने के पश्चात कैंब्रिज विश्वविद्यालय से प्राचीन दर्शनशास्त्र की पढ़ाई की। वे आई सी एस अधिकारी बनना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने भरपूर कोशिश की पर वे अनुत्तीर्ण हो गए।

एक बार उन्होंने अपने ज्ञान तथा विचारों से गायकवाड़ नरेश को भी मोह लिया। गायकवाड़ नरेश उनसे इतने प्रभावित हुए कि बड़ौदा में उन्होंने अरविंद को अपनी निजी सविच के पद पर नियुक्त कर लिया।

सन् 1906 में जब बंग भंग का आंदोलन चल रहा था तो अरविंद ने बड़ौदा से कलकत्ता की ओर प्रस्थान कर दिया। जनता को जागृत करने के लिए अरविंद ने उत्तेजक भाषण दिए। उन्होंने अपने भाषणों तथा बंदे मांतरम में प्रकाशित लेखों के द्वारा अंग्रेज सरकार की दमन नीति की कड़ी निंदा की थी जिसके फलस्वरूप अंग्रेज सरकार ने उन पर राजद्रोह का मुकद्मा चला कर जेल की सजा सुना दी।

सजा सुन कर अरविंद घबराए नहीं बल्कि उन्होंने कहा था चाहे सरकार क्रांतिकारियों को जेल में बंद करे, फांसी दे या यातनाएं दे पर हम यह सब सहन करेंगे लेकिन यह स्वतंत्रता का आंदोलन कभी रूकेगा नहीं। एक दिन अवश्य आएगा जब अंग्रेजों को हिन्दुस्तान छोड़ कर जाना होगा।

सजा के लिए उन्हें अलीपुर जेल में रखा गया। जेल में अरविन्द का जीवन ही बदल गया। वे जेल की कोठी में ज्यादा से ज्यादा समय साधना और तप में लगाने लगे। वे गीता पढ़ा करते और भगवान श्री कृष्ण की आराधना किया करते। ऐसा करने से उनके जीवन के प्रति विचार ही बदल गए।

जेल से बाहर आकर वे किसी भी आंदोलन में भाग लेने के इच्छुक नहीं थे पर अंग्रेजों के जासूस हर दम उनके पीछे लगे रहते क्योंकि अंग्रेजी सरकार उन्हें अपने लिए मुसीबत का पहाड़ समझती थी। फिर इसके पश्चात अरविन्द गुप्त रूप से पांडिचेरी चले गए क्योंकि वहां फ्रांसीसियों का अधिकार था। अंग्रेज सरकार महर्षि अरविंद को गिरफ्तार न कर सकी।

अरविन्द जी के पांडिचेरी चले जाने की बात मालूम होने पर अंग्रेज सरकार ने एड़ी चोटी का जोर लगाया पर उन्हें बंदी न बना सकी। वहीं पर रहते हुए अरविन्द ने योग द्वारा सिद्धि प्राप्त की और आज के वैज्ञानिकों को बता दिया कि इस जगत को चलाने के लिए एक अन्य जगत और भी है।

5 दिसम्बर 1950 को महर्षि अरविंद निर्वाण प्राप्त कर गए। जब भी क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास लिखा जाएगा तो अरविंद जी के त्याग, साहस तथा यौगिक साधना की चर्चा बड़े गर्व के साथ की जायेगी।

महर्षि अरविंद देशभक्ति एवं राष्ट्रवाद के देवदूत, मानवता के प्रेमी, ज्ञानी, क्रन्तिकारी और महायोगी के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। वे संस्कृत, बंगला आदि स्वदेशी तथा ग्रीक, इतालवी, फ्रेंच, अंग्रेजी आदि भाषाओं के ज्ञाता थे। उन्होंने पूर्व और पश्चिम की आध्यात्मिक विचारधाराओ का यौगिक स्तर से समन्वय किया।
आश्रम में श्री अरविन्द अपने चिंतन और मनन को गंभीरतापूर्वक लिपिबद्ध किया। उनके कृतित्व को चार भागो में बांटा जा सकता है-१.योग एवं आध्यात्म; 2. समाज ,संस्कृति एवं राजनीती ; ३. कविता ,नाटक आदि ; ४.चिट्ठी -पत्री। श्री अरविन्द की रचनाओ का संग्रह 'अरविन्द रचनावली 'के नाम से सन १९७२ में उनके जन्मशती पर तीस खंडो में प्रकाशित हुआ था। बाद में शोधकरतो ने कुछ अन्य रचनाए भी खोज निकाली और उनके १२५ वी जयंती पर सन१९९७ में उनके रचनावली पैतीस खंडो में प्रकाशित हुयी।


29 नवंबर, 2025

जीवन के महान रहस्य-सम्पूर्ण ज्ञान

जीवन के महान रहस्य-सम्पूर्ण ज्ञान

‘भाग्य नहीं अपना नज़रिया बदलें, लोग नहीं अपनी सोच बदलें औरों को नहीं पहले स्वयं को पहचानें।’ क्या आप इस पंक्ति से सहमत हैं ? यदि हाँ तो आईये इस पंक्ति को अपने जीवन में उतारें। यदि आप उपरोक्त पंक्ति से सहमत नहीं हैं तो पहले इस पंक्ति की गहराई समझें:
‘जो भाग्य से मुक्त वह भाग्यशाली, जो जीवन से भागा वह अभागा, जो जीवन में जागा और जिसने जाना संपूर्ण जीवन रहस्य वह महाभाग्यशाली’
इस नये नज़रिये से ऊपर दी गयी सच्चाई समझें। लोग रिश्ते बदलते हैं लेकिन अपनी सोच नहीं बदलते। लोग राशियों और ज्योतिषियों के यहाँ चक्कर लगाते रहते हैं ताकि भाग्य बदले लेकिन अपना नज़रिया नहीं बदलते। लोग बड़े लोगों से पहचान बनाने के चक्कर में, धन समय और बल खर्च करते हैं लेकिन स्वयं को पहचानने के लिये एक पुस्तक नहीं खरीदते, वे सत्य सुनने का समय नहीं निकाल सकते, मौन (ध्यान) में बैठ नहीं सकते।
इंसान आने वाले कल का रहस्य आज जानता है। वह उम्मीद के सहारे जीवन काटता है। भविष्य का रहस्य जानकर वह वर्तमान में खुश होना चाहता है। अगर भविष्य में सारी परेशानियाँ मिट जाने वाली हैं तो वह वर्तमान में धीरज के साथ जी सकता है, ऐसी उसकी मान्यता है इसलिये वह भविष्य जानने के लिये अगल-अलग लोगों के पास भटकता है क्या भविष्य की जानकारी जानकर परेशानियों से मुक्ति पायी जा सकती ? परेशानियों से मुक्त होना है तो वर्तमान का रहस्य जानना चाहिये। वर्तमान का रहस्य जानकर हर इंसान प्रसन्न हो सकता है। वर्तमान का रहस्य हर एक के लिये एक जैसा है। वर्तमान का रहस्य काल्पनिक नहीं सच्चा होता है। भविष्य का रहस्य कुछ काल्पनिक और कुछ अधूरा है इसीलिये भविष्य के रहस्य में न उलझकर जीवन के पाँच महान रहस्य जानें जो हमारा वर्तमान सँवारते हैं।

वर्तमान का रहस्य अभी और यहीं है। वर्तमान का क्षण सत्य है। हम सबको वर्तमान में रहना सीख लेना चाहिये। वर्तमान में ही सही कर्म किया जा सकता है। वर्तमान से ही भविष्य बदला जा सकता है। वर्तमान ही अकल का ताला खोलता है। अकल यानी जहाँ कल नहीं है (अ-कल)। बीता हुआ कल और आने वाला कल अकल के साथ नहीं है। हमें भी अकल का ताला खोलकर यानी जीवन के पाँच महान रहस्य, महाजीवन के नियम जानकर आनंदित जीवन जीना चाहिये।
हर इंसान आनंद पाना चाहता है लेकिन आनंद की राह में आने वाली रुकावटों से रुक जाता है। जीवन में होने वाली घटनाओं से परेशान होकर वह मन को बहाना दे देता है। बहाना पाकर मन लक्ष्य की ओर यात्रा बन्द कर देता है लेकिन इंसान को अपना लक्ष्य नहीं भूलना चाहिए। कभी भी मन के बहानों में न बहें, बहानों में तैरना सीखें। जो लोग बहानों में बह गये उन्होंने कभी भी अपना लक्ष्य नहीं पाया। वे लोग जीवन के अनमोल रहस्य जाने बिना इस संसार से चले गये। वे लोग जीवनभर दुःख असंतुष्टि और पश्चाताप में जीते रहे। हमें बहानों में तैरकर अपने असली लक्ष्य तक पहुँचना है। हमें जीवन के पाँच महान रहस्य आत्मसात करने हैं, जो इस पुस्तक का लक्ष्य है। जीवन के पाँच महान रहस्य आत्मसात करने हैं, जो इस पुस्तक का लक्ष्य है। जीवन के पाँच महान रहस्य जानकर सदा विश्वास और आनंद से दूसरों को आनंदित करते हुए जीवन जीयें। जीवन के वे पाचों महान रहस्य आपको जीवन का संपूर्ण ज्ञान देंगे।

जीवन में आने वाली परेशानी को परेशानी न समझकर उसे सीढ़ी निमित्त सीख चुनौती बनाने की कला सीखें। इस रहस्य को याद रखने के लिये आपकी पाँच अंगुलियों पर बिठाया गया है। आप इसे चलते-फिरते, काम करते, अंगुलियों के सहारे याद रखकर इस्तेमाल कर सकते हैं। हर परेशानी आपको महान रहस्यों की याद दिलायेगी। हर काल्पनिक चित्र दिया गया है। इस चित्र में जीवन के पाँचों महान रहस्य प्रतीक के रूप में दिखाये गये हैं। इस चित्र के सहारे आप पाँचों महान रहस्य सदा याद रख पायेंगे और उनका उपयोग अपने जीवन में कर पायेंगे।
इस पुस्तक को शुरूआत से अंत तक पूरा पढ़ें और इसमें दिये गये संपूर्ण ज्ञान का पूर्ण उपयोग करें ताकि जीवन का कोई भी पहलू आपसे अपरिचित न रहे। इस पुस्तक द्वारा आप संपूर्ण जीवन का ज्ञान प्राप्त करके अपना जीवन सफल करें।
यह पुस्तक पढ़कर आप अपने तथा औरों के जीवन को बेहतर बनाने जा रहे हैं। इस कार्य के लिये आपको शुभ इच्छा, हॅपी थॉट्स।
सरश्री....

पहला खण्ड

पहला महान रहस्य
महाजीवन दर्शन
एक हाथ की ताली
अध्याय 1

सत्य के रहस्य को, जीवन के महान रहस्य को समझने आये हुए खोजियों (सत्य प्रेमियों) का स्वागत है। आप सबको शुभेच्छा। शुभ इच्छा वह है जो हमें मान्यताओं से मुक्ति दिलाये। शुभ इच्छा वह है जो तेजज्ञान (महान रहस्य) समझाये, शुभ इच्छा वह है जो सभी इच्छाओं से मुक्त करके खुद मिट जाय। शुभ इच्छा वह है जो महाजीवन का दर्शन कराये।
क्या जीवन एक सफर है जिसे हर एक को भुगतना (suffer करना) पड़ता है ? क्या जीवन एक रास्ता है जहाँ हर एक को धक्के खाकर यात्रा करनी पड़ती है ? क्या जीवन का अर्थ कोई समझा नहीं, कोई जाना नहीं ? क्या जीवन चलने का नाम है जहाँ सुबह और शाम चलते रहना पड़ता है ? क्या जीवन एक संघर्ष है जहाँ हार और जीत का युद्ध चल रहा है ? क्या जीवन एक पहेली है जो कभी हँसाती है तो कभी रुलाती है ? क्या जीवन एक आइस्क्रीम की तरह है जिसे समय रहते खा लेना चाहिये ? क्या जीवन एक चिड़िया है जो मौत के पिंजरे में कैद है ? क्या जीवन का दर्शन गरीबों की बस्ती में देखने को मिलता है ? क्या जीवन महाजीवन बन सकता है जो मृत्यु से मुक्त है ?

हर इंसान में जीवन है। जीवन ही चैतन्य है। जीवन जिंदादिली का नाम है। जीवन वह जादू है जिसकी उपस्थिति में कोयल गीत गाती है, बुलबुल मीठे बोल सुनाती है, तितली शहद का स्वाद लेती है, फूल खुशबू लुटाते हैं, बादल जल बरसाते हैं, कवि कविता लिखते हैं, भक्त भजन करते हैं। जीवन वह ताली है जो एक हाथ से बजती है क्योंकि जीवन के अलावा विश्व में कुछ भी नहीं है। जीवन जब जीवन का अनुभव इंसान के शरीर द्वारा करता है तब एक हाथ की ताली जिसे अनहद (अनाहत) नाद कहा गया है, बजती है। जीवन वह चैतन्य है जो दुनिया का, साक्षी बनने से लेकर स्वसाक्षी बनना चाहता है।
जीवन को जीवन की अभिव्यक्ति करने के लिये, अपने रंग, अपने रूप, अपने गुण प्रकट करने के लिये किस चीज की आवश्यकता है ? जीवन को अपनी पूर्ण अभिव्यक्ति करने के लिये एक ऐसे इंसानी शरीर की आवश्यकता है जो मान्यता से मुक्त है, जो गलत संस्कारों, आदतों, वृत्तियों (पैटर्नस्) से मुक्त है, जो तमोगुण से आज़ाद है। जीवन को अपने संपूर्ण आयाम से खुलने के लिये ऐसे इंसानी शरीर की आवश्यकता है जो भक्ति युक्त, प्रेम से भरा हुआ, नफरत, ईर्ष्या, द्वेष व अहंकार से मुक्त है। ऐसा शरीर पाने के लिये जीवन को साधना बनाना चाहिये। अपने अथवा दूसरों के शरीर को सताने की बजाय उसे ध्यान में बैठने का प्रशिक्षण देना चाहिये। इसे एक उदाहरण से समझें।
एक धोबी था। वह धोबी अपने गधे को लेकर कपड़े धोने घाट पर जाता था। उसके घर में उसके पास एक बकरी और बंदर भी थे। वह रोज बकरी और बंदर भी थे। वह रोज बकरी और बंदर को बाँधकर जाता था। रोज ऐसा होता था कि धोबी के जाने के बाद बंदर अपनी रस्सी खोल लेता था और उछल कूद करता था, घूमता-फिरता था और धोबी के आने से पहले रस्सी बाँधकर बैठ जाता था।

एक दिन ऐसा हुआ कि धोबी ने थैला भरकर मूँगफली लायी और घर पर रख दी। फिर वह काम से निकल गया। बंदर ने रोज की तरह अपनी रस्सी खोल दी, सारी मूँगफली खा ली और अपने आपको फिर से बाँधकर बैठ गया मगर अपने आपको बाँधने से पहले उसने बकरी की रस्सी खोल दी। अब आप जानते हैं कि क्या होगा। अब धोबी घर आता है, मूँगफली न देखकर और बकरी की रस्सी खुली देखकर उस बकरी की पिटाई करता है। बंदर मन ही मन खुश होता है। आप जानते हैं कि बकरी का दोष न होते हुए भी बकरी की पिटाई हुई।
इस कहानी में बकरी कौन है ? बंदर कौन है ? मूँगफली क्या है ? धोबी कौन था ? जो बकरी है वह हमारा शरीर है जिसकी पिटाई हुई और बंदर है तोलू मन, उछल कूद करने वाला मन। घटना होने पर हमारा मन यह बड़बड़ करता है कि ‘यह अच्छा हुआ, यह बुरा हुआ, ऐसा क्यों हुआ, ऐसा नहीं होना चाहिये, वैसा होता था तो अच्छा होता था, ऐसा नहीं होता था तो ज्यादा सही था।’ मन की कितनी उछल कूद होती है ? इसलिये कहते हैं, ‘मन अंदर मंदर, मन बाहर बंदर’ मन अंदर है तो मंदिर है। असली मंदिर बनाये गये ताकि मंदिर को देखकर आपको याद आये कि क्या आपका मन अंदर भी जाता है या सदा बाहर ही बाहर माया के आकर्षण में रहता है ?

अब इस कहानी से समझें कि दोष किसका होता है और पिटाई किसकी होती है। इंसान महाजीनव की यात्रा शुरू करता है तो वह सोचना है कि अभी मुझे उपवास रखने चाहिये, ये-ये उपवास रखूँगा तो मन शांत हो जायेगा, सत्य मालूम पड़ेगा। यह सोचकर कोई उपवास रख रहा है, शरीर को तपा रहा है, तप कर रहा है, कोई चार बजे उठकर गंगा नहाता है। यह सोचकर कि इस दिन को यह नहीं खाना चाहिये, इस दिन वहाँ नहीं जाना चाहिये, ऐसा अनिष्ट हो जायेगा, वैसा अपशगुन हो जायेगा, बहुत सारे डर पाल लेता है। कितने सारे कर्मकाण्ड शरीर से जुड़े हुए हैं। आपने ये कर्मकाण्ड पढ़े होंगे, सुने होंगे, कर रहे होंगे मगर महाजीवन पाना है तो समझना है कि जो शरीर की पिटाई है वह गलत है। समझ और प्रशिक्षण मन को मिलना चाहिये। हमें अलग-अलग तरह के मार्ग बताये गये हैं, जैसे कि जप, तप, तंत्र, सेवा, धर्म, कर्म और ध्यान इन सभी मार्गों के ऊपर जो समझ तैयार होनी चाहिये वह अगर नहीं होती है तो शरीर की पिटाई होती रहती है। हमें असली रहस्य समझना चाहिये। जीवन के महान रहस्य समझकर जीवन की अभिव्यक्ति करनी चाहिये। ऐसा करके हमारा जीवन महाजीवन बनेगा।
सच्चाई, असलियत, हकीकत, सत्य क्या है ? हमें क्या समझना है ? जीवन का रहस्य क्या है ? हम इस शरीर के द्वारा, मन के द्वारा, अपनी बुद्धि के द्वारा जीवन की अभिव्यक्ति कर रहे हैं। हमारे पास बकरी और बंदर भी है तो किसके पास बकरी है ? किसके पास बंदर है ? जीवन का यह रहस्य समझ में आयेगा तो जो बोझ लेकर हम जी रहे हैं वह खतम होगा। जीवन में लोग दो तरह के बोझ लेकर जीते हैं, आने वाले भविष्य का बोझ या जो हो चुका है उस अतीत का बोझ। हमसे जो कुछ गलतियाँ हो चुकी हैं उनका अपराध बोध (गिल्ट) हमारे मन पर होता है ‘मैंने ऐसा क्यों किया, मेरे हाथ से ऐसा क्यों हो गया’, यह सोचकर इंसान अनावश्यक बोझ लेकर जीता है। जब हमें जीवन रहस्य समझ में आता है तो हमें पता चलता है कि ये बोझ लेकर जीने की जरूरत नहीं है।

अगर हमने इस वक्त मिठाई खायी है और मिठाई खाकर यदि हम चाय पीयें तो क्या होगा ? आपको चाय फीकी लगती है क्योंकि पहले से ही जो मिठाई खायी हुई है उसकी मिठास चाय का स्वाद लेने में बाधा बनती है। उसी तरह आपने यदि जीवन के बारे में कुछ सोच (मान) रखा है तो उसे कुछ समय के लिये थोड़ा बाजू में रखकर पढ़ेंगे तो आप इन रहस्यों और जीवन के नियमों को समझ पायेंगे।
किसी इंसान ने एक लेक्चर लिया। वह इंसान लेक्चर इस बात पर ले रहा था कि शराब पीने से क्या नुकसान होते हैं, लोग शराब पीना क्यों छोड़ दें। उसने पानी से भरे दो गिलास लाये थे। एक गिलास में पानी रखा है और एक में शराब रखी और वह कुछ जिंदा कीड़े लेकर आया था। वे कीड़े उसने पानी में और शराब में डाले। फिर लोगों ने देखा कि देखते ही देखते जो कीड़े शराब के अंदर गये थे वे मर गये। उस इंसान ने लोगों से पूछा कि इस प्रयोग से आपने क्या समझा ? एक इंसान ने उठकर कहा, ‘अगर हम शराब पीयेंगे तो ऐसे कीड़े हमारे पेट में नहीं रहने वाले।’ बताया जा रहा था। कि शराब पीना कितना हानिकारक है मगर वह बात नहीं समझी गयी, कुछ अलग ही समझ लिया गया। इसलिये आप जीवन की कोई भी धारणा मन में न रखते हुए जीवन के महान रहस्य पढ़ें और उनका पूरा व सही फायदा लें।

जीवन रहस्य का पता चलने से ही आपको आनंद की कमी नहीं होगी। ज्ञान न होने की वजह से हम गलत चीजों में आनंद लेना चाहते हैं। कोई शराब पीयेगी, जुआ खेलेगा, रेस कोर्स में जायेगा, कोई कहेगा मैं यह चीज पा लूँ, वह चीज पा लूँ, मेरा प्रमोशन हो जाय, यह हो जाय, वह हो जाय ताकि मुझे आनंद मिले। उसे पता नहीं है कि असली आनंद हमारे अंदर है, उसे कैसे पाया जाय यह जानना आवश्यक है।
जीवन रहस्य पता चल जाय तो फिर कभी आपको आनंद की कमी नहीं होगी या जो चीज आप जीवन में चाहते हैं, उसकी कमी नहीं होगी। हमें दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। आज हम दूसरों पर निर्भर होते हैं, ‘कोई मेरी तारीफ करे, मेरा काम करे, मेरे बर्थ डे पर तोहफा लाकर दे तो मैं खुश हो जाऊँ। कोई और मेरे लिये कुछ करने वाला है तो मैं आनंद पाऊँगा।’ मगर क्या ऐसा हो सकता है कि मेरा आनंद मेरे अंदर ही हो, मैं जितना चाहूँ, जब चाहूँ आनंद ले सकूँ ? क्या ऐसा कोई इंसान आपको मिलता है जो आपको कहे कि मैं खुश हूँ, कारण ‘मैं हूँ’ मेरे लिये इतना ही काफी है। मेरा होना ही आनंद का कारण है।
आनंदित इंसान ही अपने जीवन को जीवन से बदलकर महाजीवन बना सकता है। आनंदित इंसान ही सच्चे जीवन का दर्शन कर सकता है, जो आँखों से नहीं हृदय से महसूस किया जाता है।

महान का मकान
आप पृथ्वी पर मेहमान हैं
अध्याय 2

हर इंसान इस पृथ्वी पर मेहमान है। अगर हर इंसान पृथ्वी पर मेहमान है तो यह सवाल उठता है कि ‘हम किसके मेहमान है ?’
हम सब महान के मेहमान हैं। ईश्वर महान है। अगर आपको उस महान का मकान दिखायी दे तो आपका रहना, चलना, उठना, बैठना सब बदल जायेगा। जब आप किसी के घर मेहमान बनकर जाते हैं तो वहाँ कैसे रहते हैं ? क्या वहाँ आप यह सोचते हैं कि यह आपका कमरा है, इसमें कोई न आये ? ऐसी जिद आप मेहमान बनकर दूसरे के घर पर नहीं करते क्योंकि आपको सतत् यह बात याद रहती है कि आप वहाँ मेहमान हैं। अगर आप महान के मेहमान हैं और यह बात आपने समझ के साथ पूरी तरह से जान ली है तो आपका व्यवहार अलग होगा।
किसी इंसान के घर में एक उपयोगी वस्तु है मगर उसे पता नहीं कि वह वस्तु उसके घर में है तो उस वस्तु के होने का लाभ वह नहीं ले पायेगा। जैसे किसी के घर में एक छाता है और उसे पता नहीं है कि उसके घर में छाता है तो वह इंसान ‘अतेज धूप’ में जलता रहेगा और ‘अतेज बारिश’ में भीगता रहेगा। फिर कोई उसे बतायेगा, ‘आपके पास एक छाता है और वह छाता आपके घर में ही है।’ उसके पास छाता है यह जानकर वह सिर्फ खुश होता रहा तो भी उसका काम पूरा नहीं होगा। जब तब कोई उसे छाता खोलना नहीं सिखाता तब तक उस इंसान की पूरी संभावना नहीं खुलेगी।

एक गाँव के दस लोग कहीं जा रहे थे। यह जानते हुए कि उनकी बुद्धि थोड़ी मंद है, लोगों ने उन्हें समझाया कि दस लोग जा रहे हैं तो दस लोग ही वापस आयें। जाते-जाते रास्ते में उन्हें एक नदी पार करनी पड़ी। वह नदी उन्होंने तैरकर पार की। दूसरे किनारे पर पहुँचने के बाद उन्होंने तय किया कि सबसे पहले कितने लोग नदी पार करके आये हैं यह गिनते हैं। उनमें से एक ने गिनती करना शुरू किया और उसने नौ लोगों को ही गिना। सिर्फ नौ लोग ही नदी पार करके आये हैं यह देखकर वह इंसान रोने लगा। उसे लगा कि दस में से एक इंसान डूब गया मगर आप समझ गये होंगे कि वह इंसान खुद को छोड़कर बाकी सबकी गिनती कर रहा था।
इंसान भी अपने जीवन में यही कर रहा है, खुद को छोड़कर सबकी गिनती कर रहा है। अगर आपने किसी से पूछा, ‘‘क्या आप खुद को जानते हैं ?’ तो उसका सिर शर्म से झुक जायेगा क्योंकि इंसान सब कुछ जानने में समय बिताता है मगर उसे खुद के बारे में बहुत कम जानकारी होती है। उसे विश्व के सारे सवालों के जवाब मालूम होते हैं, वह प्रतियोगिता (कॉन्टेस्ट) में गया तो करोड़पति बन जाता है मगर उससे पूछा कि आप कौन हैं तो उसका जवाब उसके पास नहीं है।
जीवन के पाँच महान रहस्यों के साथ भी ऐसा ही है। ये रहस्य लोग पहले से ही जानते हैं। आप जो जानते हैं, वही आपको बताया जा रहा है। जो आपके पास है, उसके बारे में ही बातचीत की जाती है। ये पाँच रहस्य ऐसे हैं जो सभी को पता हैं। फिर भी आपको इसलिये बताया जा रहा है क्योंकि आप वे रहस्य शब्दों में नहीं जानते और साथ ही उनका इस्तेमाल करना भी नहीं जानते नीचे दी गयी सूची से आपको जीवन के पाँच महान रहस्यों की जानकारी मिलेगी।

National Institute of Naturopathy (NIN), Pune




National Institute of Naturopathy (NIN), Pune is an autonomous body under Ministry of AYUSH, Government of India, located at a historical place called "Bapu Bhavan" situated at Tadiwala Road, behind Pune Railway Station, Pune. "Bapu Bhavan" is named after Mahatma Gandhi, Father of the Nation, who made this Institute his home by staying here for 156 days, whenever he visited Pune Since 1944.

It was very close to my home , so many health related exercises and expert advises are displayed here. As I heard this first of its kind in India. Really unique.

Formerly this place was known as "Nature Cure Clinic and Sanatorium", run by Late Dr. Dinshaw K. Mehta.AII India Nature Cure Foundation Trust was established in this Centre and Mahatma Gandhi became its life long Chairman. Gandhiji conducted many National and International activities from this place. Gandhiji's life is a source of guidance and a sacred heritage to us.
The NATIONAL INSTITUTE OF NATUROPATHY, PUNE came into existence on 22.12.1986. This Institute has a "Governing Body" headed by Hon'ble Minister of AYUSH as its President.
The NATIONAL INSTITUTE OF NATUROPATHY, PUNE came into existence on 22.12.1986. This Institute has a “Governing Body” headed by Hon'ble Minister of State for AYUSH (Independent Charge) as its President.
Source http://rainysingh.blogspot.in/2010/03/national-inst-of-natuopathy.html
Thanks expressed for this wonderful blog. 

The National Institute of Naturopathy - Pune

The government is the agency that everyone loves to hate.
Sometimes the government surprises us by undertaking some useful and even pleasant activities. The National Institute of Naturopathy in Pune is one such example of government oversight.

This pleasant discovery was made recently when my wife and I took my old aunt there for treatment. Poor lady was suffering from neck and shoulder pains and no medicines were helping.

Appropriately housed in a 1.6 acre lush, green, and quiet place, the institute is located at Tadiwala Road and quite close to the noisy Pune railway station.

The moment you enter the calming premises you leave behind the hustle and bustle behind almost immediately. However our first visit there will be always remembered as a frightening experience.

As we approached the treatment area, our hearts stopped for a moment.Two bluish grey aliens came towards us walking real funny and even strange. May the Lord be praised! They spoke Hindi. It seemed they were ordinary folks, merely caked completely in mud (this is part of the full-body mudpack treatment). The hardened mud all over the body, between the thighs and around the crotch explained their strange gait.

Once we got over that scary bit, we went in to meet the consulting doctors. Dr.DineshKumar & Dr Sathyanath. Consultations are helpful to understand the ailments and likely causes and are genuinely free,(normally anything said to be free, comes with hidden strings attached and a pay later tag). The doctors are knowledgeable, pleasant and behave like healers. We sometimes confuse treating with healing and can say they are healers.

Then stealing a few more minutes of their time we got a quick tour of the facilities, the history and the activities of the institute.

The centre has been around for nearly a century. Even Mahatma Gandhi ji started visiting the institute regularly from 1936 onwards. He is reported to have conducted several experiments in naturopathy during his stay. The bungalow and the adjoining cottages along with the land was gifted by Dr. Dinshaw Mehta in 1986 to the Government of India and named 'Bapu Bhavan' in honour of Gandhiji.

The doctors explained how naturopathy worked. The human body has enormous resilience and capability to heal itself. The institute helped people by de-stressing them using, yoga, employing mudpacks, various massages and bath treatments.

Results speak louder than words. We studied the expressions of most of the people leaving the institute after receiving treatment and were happy to note that they appeared mostly relaxed and happy. Even my normally grumpy aunt deemed it worthy to permit herself the luxury of a smile.

Operating under the Ministry of Health in Delhi , it's the only such facility in India. It's an institute with good yoga centres, gymnasium, library, research facilities, training centre, health shop and health-food restaurant.

Providing free training and even a stipend to 50 Young men and women each year. These trained personnel are picked up for suitable jobs almost immediately after completion of training. These youngsters earn handsome salaries in addition to providing wellness to scores of people all over the world. They are in much demand for the skills and practice they acquire at the institute.

I am sure you must be thinking, many things are simply associated with the government; it is expensive, dirty and the staff must be quite disinterested, blah, blah.....

The institute shocks you because it's clean, airy and well managed. It surprises you further because the charges for everything are either free or quite low. The staff are efficient, cordial and helpful. They do not receive nor expect any tips or gifts or favours.

Maybe these folks are drinking too much of those very reasonably priced healthy juices and herbal teas, otherwise how else can you explain this unusual efficiency and pleasantness. God bless these wonderfully helpful people.


National Institute of Naturopathy,Pune ,Conducts one year treatment assistant training course (TATC--Naturopathy Nursing) for 10th passed (Aged between 18-30),with a monthly stipend of Rs.3000/-. Next batch start from 1st July. Interview on 15th and 16th June. Recommend maximum students immediately,so that you get staff in your state. No fees will be charged from the candidates. Accommodation and food they can arrange on sharing basis as no hostel is available.
For details regarding selection of candidates to recommend,you may talk immediately to Dr. Babu Joseph, Director,NIN on phone 09423013010 or email: ninpune@vsnl.com


29 September 2004



मृत्यु जीवन का सत्य है लेकिन एक सत्य, मृत्यु के बाद शुरु होता है। इस सच के बारे में, बहुत कम लोग जानते हैं। क्या वाकई, मृत्यु के समय व्यक्ति को कोई दिव्य दृष्टि मिलती है? आखिर मृत्यु के कितने दिनों बाद, आत्मा यमलोक पहुंचती है? गरुण पुराण में, भगवान के वाहन गरुण, श्रीहरि विष्णु से मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति को लेकर प्रश्न उठाते हैं। वह पूछते हैं कि मृत्यु के बाद, आत्मा कहां जाती है? इसका उत्तर भगवान विष्णु ने, गरुण पुराण में दिया है। गरुण पुराण में, मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है।
क्या होता है मृत्यु से पहले?
गरुण पुराण के अनुसार, मृत्यु से पहले, मनुष्य की आवाज चली जाती है। जब  अंतिम समय आता है, तो मरने वाले व्यक्ति को दिव्य दृष्टि मिलती है। इस दिव्य दृष्टि के बाद, मनुष्य, सारे संसार को, एक रूप में देखने लगता है। उसकी सारी इंद्रियां शिथिल हो जाती हैं।
क्या होता है मृत्यु के समय?
गरुण पुराण के अनुसार, मृत्यु के समय 2 यमदूत आते हैं। इनके भय से अंगूठे के बराबर जीव, हा हा की आवाज़ करते हुये, शरीर से बाहर निकलता है। यमराज के दूत, जीवात्मा के गले में पाश बांधकर, उसे यमलोक ले जाते हैं। इसके बाद, जीव का सूक्ष्म शरीर, यमदूतों से डरता हुआ आगे बढ़ता है।
कैसा है मृत्यु का मार्ग?
मृत्यु का रास्ता अंधेरा और गर्म बालू से भरा होता है। यमलोक पहुंचने पर, पापी जीव को यातना देने के बाद, यमराज के कहने पर, उसे आकाश मार्ग से घर छोड़ दिया जाता है। घर आकर वह जीवात्मा, अपने शरीर में, फिर से घुसना चाहती है। लेकिन यमदूत के पाश से मुक्त नहीं हो पाती है। पिंडदान के बाद भी, वह जीवात्मा तृप्त नहीं हो पाती है। इस तरह भूख प्यास से बेचैन आत्मा, फिर यमलोक आ जाती है। जब तक उस आत्मा के वंशज, उसका पिंडदान नहीं करते, तो आत्मा दु:खी होकर घूमती रहती है। काफी समय यातना भोगने के बाद, उसे विभिन्न योनियों में नया शरीर मिलता है। इसीलिये मनुष्य की मृत्यु के 10 दिन तक, पिंडदान ज़रुर करना चाहिए। दसवें दिन पिंडदान से, सूक्ष्म शरीर को चलने की शक्ति मिलती है। मृत्यु के 13वें दिन फिर यमदूत उसे पकड़ लेते हैं। उसके बाद शुरू होती है वैतरणी नदी को पार करने की यात्रा। वैतरणी नदी को पार करने में पूरे 47 दिन का समय लगता है। उसके बाद जीवात्मा यमलोक पहुंच जाती है।
क्या है गरुण पुराण?
गरुण पुराण के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं। इसमें 19 हजार श्लोक थे, लेकिन अब सिर्फ 7 हज़ार श्लोक ही हैं। गरुण पुराण 2 भागों में है। पहले भाग में श्रीविष्णु की भक्ति, उनके 24 अवतार की कथा और पूजा विधि के बारे में बताया गया है। दूसरे भाग में, प्रेत कल्प और कई तरह के नरक के वर्णन है। मृत्यु के बाद मनुष्य की क्या गति होती है? उसे किन-किन योनियों में जन्म लेना पड़ता है? क्या प्रेत योनि से मुक्ति पाई जा सकती है? श्राद्ध और पिंडदान कैसे किया जाता है? श्राद्ध के कौन-कौन से तीर्थ हैं? मोक्ष कैसे मिल सकता है? इस बारे में विस्तार से वर्णन है।
गरुण पुराण की कथा
महर्षि कश्यप के पुत्र पक्षीराज गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन हैं। एक बार गरुड़ ने भगवान विष्णु से मृत्यु के बाद जीवात्मा की स्थिति के बारे में प्रश्न किया था। तब विष्णु जी ने, मृत्यु के बाद की जीवात्मा की गति के बारे में, गरुण को बताया था। इसीलिए इसका नाम गरुण पुराण पड़ा।
गरुण पुराण का विषय
गरुण पुराण की शुरुआत में सृष्टि के बनने की कहानी है। इसके बाद सूर्य की पूजा की विधि, दीक्षा विधि, श्राद्ध पूजा, नवव्यूह की पूजा विधि के बारे में बताया गया है। साथ ही साथ भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार और निष्काम कर्म की महिमा भी बताई गयी है। श्राद्ध में गरुण पुराण के पाठ से आत्मा को मुक्ति और मोक्ष मिलता है। इसीलिये श्राद्ध के 15 दिनों में जगह जगह गरुण पुराण के पाठ का आयोजन होता है। अपने पितरों और पूर्वजों को मुक्ति दिलाने के  लिये, ज़रूर पढ़ें गरुण पुराण।

पिता जी की डायरी से...






बिन ढूढे मिले नहीं , अपना ही पहचान .
क्या ढुढत हो गैर को,बसत जहाँ अज्ञान .
बसत जहाँ अज्ञान, राम भी पास में आये,
मनुष्य जीवन धन्य,बृथा नर मुर्ख गवाए,
कहें मौन कविराय , जग मन दुःख ही दुःख है
अपने को पहचान,सदा ही सुख ही सुख है.

-अवधेश कुमार तिवारी

How to deal with Biased Boss!!!

How to deal with Biased Boss!!! Step 1 Weigh the severity of your boss’s biases before acting. A boss may allow other e...